Patanjal Yog Darshan

अपने समय के महान योगी परमगुरुदेव पूज्यपाद ब्रह्मलीन श्री 1008 स्वामी विष्णुतीर्थजी ने ‘पातंजल योग दर्शन’ नामक हिन्दी टीका में योग, भक्ति एवं ज्ञान को एक ही ध्येय के सोपान प्रतिपादित करते हुए सिद्ध महायोग के आलोक की ओर इङ्गित किया है। जिसमें कर्मयोग, ज्ञानयोग, भक्तियोग, हठयोग आदि सभी योग सहज ही समाहित हैं। प्रस्तुत ग्रन्थ में प्रयत्न-साध्य बहिरंग-साधना (आणवोपाय) से साधक को ऊपर उठाकर स्वयंसिद्ध अंतरङ्ग साधन (शाक्तोपाय) तक की यात्रा पूर्ण होने के बाद परम् ध्येय तक पहुँचने के दिशा निर्देश हैं। पातञ्जल ‘योग सूत्र’ पर इस दृष्टि से पहली बार विचार किया गया है। इससे अंध-तमस में भटकते जीवों का श्रेय-पथ प्रशस्त होगा, ऐसी पूर्ण आशा है।

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