Navdha Bhakti

प्रस्तुत पुस्तक परम पूज्य गुरुदेव श्री स्वामी शिवोम तीर्थ जी महाराज के नवधा भक्ति पर प्रवचनो पर आधारित है। श्री गुरुदेव स्वामी शिवोम तीर्थ जी महाराज ने नवधा भक्ति एक एक अंग पर एक एक भजन की रचना करके दृष्टान्तों के माध्यम से इस पर बड़ी सरल भाषा में व्याख्या की है। अपने नौ प्रवचनों में नवधा भक्ति को एक नया रूप देकर श्री गुरु महाराज ने हम साधको पर बड़ी कृपा की है। सदैव की भाँति उनकी सहज-सरल भाषा शैली साधको-शिष्यों के अंतर तक उतर जाती है। गुरुदेव ने इष्ट और गुरु को एक ही माना है। दोनों में कोई भेद नहीं है। शक्तिपात प्रणाली के साधक होने के कारण बार-बार उनहोने साधन पर बल देते हुए कहा है कि इस भक्ति के वास्तविक स्वरूप को साधक अपने साधन के अंदर ही समझ सकता है।बाह्या भक्ति की अपेक्षा उन्होंने आन्तरिक भक्ति की अधिक महत्व दिया है। वास्तव में यह स्थिति साधक की चित्त स्थिति और चित्त की अवस्था पर निर्भर होती है।

 

जय श्री गुरुदेव !!!

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