गीतातत्वामृतSadhakDecember 21, 2024Audio Book महाभारत का युद्ध आज भी प्राणी मात्र के हृदय में शुभाशुभ संस्कारों के रूप में कौरव-पांडवों में लड़ा जा रहा है। भगवान श्री कृष्ण आज भी शाश्वत रूप में सर्वव्यापक हैं। अर्जुन भी सत्वगुण रूपी वृत्तियों के रूप में प्रत्येक चित्त में विद्यमान है, मात्र आवश्यकता, सभी सात्विक वृत्तियों को एकाग्र कर अंतर में विद्यमान भगवत शक्ति के प्रति उन्मुख होने की है। तब गीता ज्ञान अंदर से ही प्रकट होना आरंभ हो जाता है। गुरुदेव स्वामी श्री विष्णुतीर्थ जी महाराज ने गीता मे गहन विचार के लिए पर्याप्त मात्रा मे सामग्री उपस्थित कर दी है जिस से जीव अपनी विचार धारा एवं साधना पद्यति मे बहुत कुछ परिवर्तन कर वास्तविक साधन पर आरुढ़ हो सकता है। श्री मद्भगवत गीता की प्रस्तुत गीतातत्वामृत नामक टीका मे श्री गुरुमहाराज ने अपनी सूक्ष्म दृष्टि एवं गहन अनुभव के आधार पर एक नई दृष्टिकोन प्रस्तुत किया है जो कि अत्यन्त विचारणीय एवं अनुकरणीय है। आशा की जाती है कि पाठक वृंद इस टीका के सूक्ष्म अवलोकन से गीता सार को हृदयंगम करके अपने आध्यात्मिक उत्थान के मार्ग को प्रशस्त करेंगे एवम विद्वान लेखक के परिश्रम को सार्थक करेंगे। भगवान सबका कल्याण करें!!! जय गुरुदेव!!!